आखिर क्यों रुक गए थे प्रभु जगन्नाथ के रथ के पहिए जानिए
जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा के बारे में तो हम सबको पता ही होगा हर साल आषाढ़ के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को जगन्नाथ रथ यात्रा जोर-शोर से निकाली जाती है. इस दौरान भगवान जगन्नाथ अपने बड़े भाई बलराम और छोटी बहन सुभद्रा के साथ तीन रथों में सवार होकर नगर भ्रमण पर निकलते हैं. मान्यता है कि जो भी मनुष्य एक बार भगवान जगन्नाथ के रथ की रस्सी को हाथ लगा देता है वह भव सागर से तर जाता है.
परंतु आखिर ऐसा क्या कारण रहा होगा जिससे प्रभु जगन्नाथ के रथ के पहिए थम गए थे। ऐसा माना जाता है कि एक बार बीच सड़क में प्रभु जगन्नाथ के रथ के पहिए रद्द हो गए थे। सभी ने बहुत कोशिश की थी रथ के पहिए को आगे बढ़ाने की ,सहस्त्र वलवानो को साथ जुटाया गया रथ को खींचने के लिए कई हाथियों के बल प्रयोग किये गय परंतु किसी ने भी रथ के पहिए को एक बूंद भी ना हिला पाया। क्या आप जानते हैं कि क्यों उस दिन जगन्नाथ के रथ के पहिए को कोई भी हिला नहीं पाया था।
।।इतिहास।।
कहा जाता है कि तब भारत में मुगलों का राज था।यह कहानी है भक्त सालबेग की जिसके पिता के मुसलमान तथा माता के ब्राह्मण होने हेतु वह जन्म से मुसलमान धर्म का ही था परंतु एक दिन मुगलों के सिपाही युद्ध में सालबेग विशन घायल हो चुका था बस हर पल मौत की प्रतीक्षा थी बस तभी सालबेग के मां ने उनसे प्रभु जगन्नाथ से प्रार्थना करने का आग्रह किया प्रभु जगन्नाथ के शरण में जाते हैं सालबेग के सारे दर्द पीड़ा दूर हो गए तथा वह पूर्ण रूप से स्वस्थ हो गया। इस
पश्चात सालबेग अपनी मां के संग श्री मंदिर के दर्शन के लिए आए परंतु मुसलमान होने हेतु सालबेग को मंदिर में प्रवेश ना करने का आदेश मिला और उसे यह भी कहा गया की साल में एक बार प्रभु श्री जगन्नाथ अपने रथ पर सवार होकर मंदिर से बाहर आते हैं तथा अपने सारे भक्तों को दर्शन देते हैं इस पश्चात सालबेग उस पलका हर वक्त प्रतीक्षा करता रहा। इस बीच प्रतीक्षारत सालबेग वृंदावन के भ्रमण के लिए चल पड़ा बीच रास्ते में लौटते हुए सालबेग को तेज बुखार आया परंतु इसी बीच रथ यात्रा का समय भी हो चुका था सालबेग मन ही मन प्रभु से प्रार्थना करता रहा कि कास प्रभु उसे एक दर्शन दे जाए। पुराण कथा के अनुसार उस दिन रथ के पहिए रुद्ध हो गए प्रभु जगन्नाथ रुके हुए थे सिर्फ अपने भक्त को अपनी दर्शन देने के लिए जैसे ही सालबेग वृंदावन से पूरी लौटा प्रभु जगन्नाथ के दर्शन किए वैसे ही रथ अपने आप चलने लगा इसी कारण से आज भी श्रीहरि को भक्तवत्सल कहा जाता है ।
शायद इसी कारण से आज भी पूरी से निकलते हुए प्रभु जगन्नाथ का रथ एक मजार के सामने जरूर रुकता है।।
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