जगन्नाथ पुरी धाम कई अलौकिक विशेषताओं से संपूर्ण है। हर वर्ष शुक्ल पक्ष की तिथि में प्रभु जगन्नाथ अपने भ्राता बलभद्र तथा छोटी बहन सुभद्रा के साथ अपने रथ पर सवार होकर गुंदीचा मंदिर के रवाना होते हैं। परंतु क्या आपको पता है कि क्या है इस रथ यात्रा का असली इतिहास। क्यों हर 12 वर्ष के अंतर्गत जगन्नाथ पुरी धाम में अंधेरा छा जाता है आइए जानते हैं।। मान्यता है कि सोमनाथ के पास बने वन में जब श्री कृष्ण पीपल के पेड़ के नीचे विश्राम कर रहे थे तभी एक बहेलिए ने गलती से उन्हें हिरण समझ कर तीर से वार कर दिया था इस पश्चात उन्होंने अपने मानव शरीर का त्याग किया , पांडवों के द्वारा उनका संस्कार होने हेतु उनका बाकी शरीर तो पांच तत्वों में सम्मिलित हो चुका था परंतु उनका ह्रदय सामान्य और जिंदा रहा। कृष्ण के ह्रदय को ब्रह्म तत्व माना जाता है जिसको पांडवों द्वारा एक नीम के वृक्ष में सुरक्षित रख कर समुंदर में बहा दिया गया था। कुछ दिनों के बाद समंदर में बहता हुआ वह लकड़ी जगन्नाथ पुरी धाम में उपस्थित हुआ था। भू श्रीकृष की इच्छा से ही उस नीम के लकड़ी से प्रभु जगन्नाथ बलभद्र तथा ...
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